कोविड-19 के लॉकडाउन के कारण दिल्ली के प्रवासी कामगारों को न तो नौकरी है और न ही सामाजिक सुरक्षा; विशेषज्ञ कानूनी संरक्षण और राजनीतिक उदासीनता को ज़िम्मेदार मानते हैं.

“बीमारी से लड़ें कि भूखमरी से. अच्छा किसको लगता है जान जोखिम में डाल कर खाना लेना. घर भी जाना चाहे तो उसके लिए भी पैसे नहीं हैं.”

कोरोना महामारी के समय दिल्ली के पंजीकृत निर्माण मजदूरों को नहीं मिल पा रहा सरकारी योजनाओं का लाभ

दिल्ली में पंजीकृत मजदूरों की संख्या में लगातार कमी होने पर भी सवाल उठ रहे हैं। दिल्ली श्रम कल्याण बोर्ड में पंजीकृत हैं सिर्फ 46,000 पंजीकृत मजदूर जबकि 2015 में यह संख्या 3 लाख 17 हजार थी।

सरकारी गोदाम में सड़ रहा अनाज: राशन कार्ड नहीं होने के कारण भूखे सोने पर मज़बूर है करोड़ों परिवार

बिहार के पश्चिमी चंपारण के पचकहर गांव की 35 वर्षीय मनीषा देवी को राशन कार्ड में संशोधन के लिए आवेदन दिए हुए इस महीने की 27 तारीख को पूरे दो वर्ष हो जायेंगे, उन्हें अपने राशन कार्ड का अब तक इंतज़ार है. मनीषा कहती हैं, “राशन कार्ड के लिए चक्कर लगा-लगा कर थक गयी, अब तक राशन कार्ड बन कर नहीं आया”.

समाज में बढ़ती हिंसा, सोशल मीडिया और दुष्प्रचार: क़ानूनी प्रतिक्रिया और समस्या (भाग पांच)

लिंचिंग को लेकर सरकार के द्वारा उठाये जा रहे क़दम, सरकार की मंशा पर ही बड़े सवाल खड़े कर रहे हैं. क्या इन बदलावों से सरकार सच में लिंचिंग रोकना चाहती है या कुछ और?